Indiana Jones 5 Review: चढ़ती उम्र के बढ़ते जादू के साथ लौटे हैरीसन फोर्ड, उपसंहार में छुपा कहानी का असली मजा

अमेरिकी एक्शन एडवेंचर फिल्म ‘इंडियाना जोन्स एंड द डायल ऑफ डेस्टिनी’ इंडियाना जोन्स की पांचवी फ्रेंचाइजी है। इस फिल्म का निर्देशन जेम्स मैंगोल्ड ने किया है जब कि इससे पहले की फिल्मों ‘रेडर्स ऑफ द लॉस्ट आर्क’,  ‘इंडियाना जोन्स एंड द टेम्पल ऑफ डूम’,  ‘इंडियाना जोन्स एंड द लास्ट क्रूसेड’, ‘इंडियाना जोन्स एंड द किंगडम ऑफ द क्रिस्टल स्कल’ का निर्देशन स्टीवन स्पीलबर्ग ने किया था और फिल्म की कहानी जॉर्ज लुकास ने लिखी थी।  ‘इंडियाना जोन्स एंड द डायल ऑफ डेस्टिनी’ में दोनों कार्यकारी निर्माता के रूप में जुड़े  हैं। भारतीय संदर्भों की बात करें तो ‘इंडियाना जोन्स एंड द टेंपल ऑफ डूम’ में अमरीश पुरी भी काम कर चुके हैं।

फिल्म ‘इंडियाना जोन्स एंड द डायल ऑफ डेस्टिनी’ की शुरुआत 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान  यूरोप की मित्र देशों की मुक्ति के दौरान इंडियाना जोन्स के नाजियों द्वारा पकडे जाने से होती है, जब वह एक चुराई गई कलाकृति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास कर रहा था। इस बीच एक खगोल भौतिकीविद् जुरगेन वोलर को अपने वरिष्ठों से पता चलता है कि उन्हें कहीं अधिक मूल्यवान और शक्तिशाली कलाकृति डायल ऑफ डेस्टिनी मिली है, जिसका आविष्कार गणितज्ञ आर्किमिडीज ने किया था। लेकिन वह डायल तीन भागों में बटा है और बाकी दो अलग -अलग जगह पर हैं। कहानी 25 साल आगे बढ़ती है। जोन्स अपने विश्वविद्यालय जाता है, वहां के उसके  सहकर्मी एक आश्चर्यजनक सेवानिवृत्ति पार्टी के साथ उसका स्वागत करते हैं। निराश जोन्स अपने दुखों को दूर करने के लिए पास के बार में जाता है। वहां उसकी मुलाकात अपनी  पोती हेलेना से होती है, जिसे उसने 18 वर्षों में नहीं देखा है।  विश्वविद्यालय के स्टोर रूम में कलाकृति डायल का पहला तिहाई हिस्सा बड़ी चालाकी से हेलेना हासिल कर लेती है। जोन्स को जैसे ही पता चलता है कि कुछ और लोग डायल को हासिल करना चाहते हैं, जोन्स को कलाकृति डायल के बाकी हिस्सों को अपने कब्जे में लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है। 

80 वर्ष की उम्र में  इंडियाना जोंस के रूप में हैरिसन फोर्ड फिर एक बार अच्छी एक्टिंग से जलवा बिखेरा है। फिल्म के निर्देशन जेम्स मैंगोल्ड ने एक्शन और फिल्म के किरदार के बीच संतुलन को परफेक्ट रूप से दिखाने की कोशिश की है। फिल्म के कुछ सीन कल्पना से भी परे लगते हैं, जब हेलेना विमान का पीछा मोटरसाइकिल से करते हुए विमान में चढ़ने में सफल हो जाती है। इस तरह की घटना में अफगानिस्तान में तालिबान से बचकर भाग रहे कई लोगों की मौत हो गई थी। जब वे विमान के व्हील वेल  के अंदर छिपकर  विमान में यात्रा करने की कोशिश कर रहे थे। इस तरह की घटना साल 1996 में भी सुनने को मिली थी जब प्रदीप सैनी और उनके छोटे भाई विजय सैनी ने नई दिल्ली में एक ब्रिटिश एयरवेज बोइंग  के व्हील वेल  में छिप यात्रा की जिसमें विजय की मौत हो गई थी। हेलेना का विमान के व्हील वेल के माध्यम से  विमान के अंदर घुसना बहुत ही अप्रत्याशित लगता है।

इस फिल्म की कमजोर कड़ी ये है कि यह इस सीरीज की पहले रिलीज हो चुकी फिल्मों के जादू को अपने साथ आगे बढ़ाने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाती है। हालांकि, फिल्म के कुछ एक्शन सीन ऐसे है जिसे देखकर रोंगटे खड़े हो जाए, लेकिन फिल्म में जहां  पर भावनात्मक दृश्य आते हैं वहां निर्देशक अपने कलाकारों से सामंजस्य बिठाने से चूक गए। फिल्म में हैरिसन फोर्ड का काम सराहनीय रहा ही है, बाकी कलाकारों में फोबे वालर-ब्रिज,एंटोनियो बैन्डरस,जॉन राइस-डेविस, टोबी जोन्स,बॉयड होलब्रुक, एथन इसिडोर, मैड्स मिकेलसेन जैसे कलाकारों ने अपनी भूमिका से पूरी तरह से न्याय करने की कोशिश की है। हां, फिल्म की अवधि अगर दो घंटे 22 मिनट की बजाय सिर्फ दो घंटे ही होती तो शायद इसका असर और बेहतर होता। इन कमियों के बावजूद ये फिल्म बकरीद की छुट्टी और उसके बाद सप्ताहांत पर मनोरंजन के लिए उपयुक्त है।

Leave a comment